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Mythological Information : नर्मदा के प्रसिद्ध योगी गन्डा बाबा

 नर्मदा के प्रसिद्ध योगी गन्डा बाबा :--गन्डा बाबा सदैव हंसते रहते थे। बाबा ने अघोरपन की हद कर दी थी। वे गुरुदेव के आसन के पास ही वैठे रहते थे। दिनभर गांजा, भांग पीते थे नागाओं के साथ। गंगा पास में बह रही थी पर उन्होंने गंगा की तरफ देखा भी नहीं। दिन - रात एक ही आसन पर बैठे रहते। धीरे-धीरे शाही स्नान करने का दिन आ गया। सजधज कर सोने चांदी के रथ और पालकियों पर सवारी करने की तैयारी होने लगी। उधर नागाओं का जुलूस था। धूप विकट थी सभी लोग चिन्तित थे।

          जूलूस का मार्ग बहुत लम्बा था। नागाओं में किसी न किसी को धूप से गिर जाने का भय था। धीरे-धीरे जूलूस सजने लगा। महामंडलेश्वरों, मठाधीशों, शंकराचार्यों, श्री महंतों की सवारियां देखने योग्य थी। वे सभी पद और मर्यादा के अनुकूल आगे पीछे रखे थे। नागाओं का दल सेना के सदृश तीन कतारें बनाकर खड़ा किया गया था। धूप ने अपना प्रभाव दिखाया।

               तभी गन्डा बाबा आकर खड़े हो गये, क्यों रे महात्मा! तू भी जा रहा है? धूप ने परीक्षा की घड़ी खड़ी कर दी। पर यह अच्छा नहीं, साधुओं को कष्ट होगा। क्या कुछ किया जाए उन्होंने गुरुदेव से पूछा। गुरु जी ने हां कह दिया।

     गन्डा बाबा - “लो तुम भी क्या याद रखोगे” और उन्होंने हाथ को आसमान की तरफ उठाकर जोरों की अवाज दी - आ-आ - आ तीन बार बोला। बादल के टुकड़े आसमान में मंडराने लगे और धीरे-धीरे कुंभ मेले को अपनी छाया में ले लिया। चारों तरफ धूप थी पर वहां पर छाया थी। उन्होंने दौड़कर अपने बाघम्बर को उठा लिया। और कहा महात्मा मैं चलता हुं। चण्डिका बुला रही है फिर नर्मदा किनारे चला जाऊँगा। फिर मिलूंगा मेरी आवश्यकता अब यहां नहीं। वे चल पड़े। चारों तरफ से उन्हें रोको, उन्हें रोको वह कोई श्रेष्ठ महापुरुष है की अवाज आई। पर वे न जाने भीड़ में कहां खो गये। उन्हें लोगों ने ढूंढा पर कहीं नहीं मिले। शाही सवारियां चल दी और शाही सवारियों के साथ बादल भी छाया देता रहा। अगल - बगल में धूप पर नागाओं के ऊपर छाया। हर - हर महादेव के नारों से आसमान गूंज रहा था। लोग बाबा के अद्भुत चमत्कार को सराह रहे थे और कुछ लोग पश्चाताप कर रहे थे कि वह हमारे साथ हमारे बीच में थे हम उन्हें पहचान नहीं सके। ये परम् तपस्वी नर्मदा घाटी के प्रसिद्ध योगी गन्डा बाबा थे। उन्हें सामाजिकता और शरीरिक भावों से कोई संबंध नहीं था। वे परमार्थ का जीवन जीते थे। संस्कारों को खोज - खोज कर मिटाते थे। अच्छे साधकों को आत्मीयता का बोध कराते थे।





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