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Good Thoughts : आत्मा ही ब्रह्मा है

 आत्मा ही परमात्मा कैसे हैं?


हम मानते हैं कि सूर्य एक ही है और इसी सूर्य को कोई sun, दीवाकर, दिनकर, भास्कर और सूरज इस प्रकार अलग-अलग भाषा में अलग-अलग नामों से बुलाते हैं लेकिन वैज्ञानिक जानते हैं कि सूर्य जैसे अनंत तारे ब्रह्मांड में विद्यमान है,वास्तव में सूर्य अनंत है।


ऐसी ही हम मानते हैं कि भगवान एक ही है और इन्हीं भगवान को कोई अल्लाह, गॉड,ईश्वर,भाग्यविधाता,ब्रह्मा,परमात्मा कहता है लेकिन कैवलज्ञानी जानते हैं कि ब्रह्मांड समस्त अनंत जीवात्मा से भरा है और सभी आत्मा ही परमात्मा है (अहम् ब्रह्मास्मि) 

वेदों में भी लिखा है कि रूद्र ही परमात्मा है, रूद्र ही जीवात्मा है ,और समस्त ब्रह्मांड में अनंत रूद्र है ,अथार्त अनंत परमात्मा है।

आत्मा ही परमात्मा है और परमात्मा अनंत है।


जिसप्रकार हिरण कस्तूरी की खोज में इधर-उधर दौड़ता है लेकिन कस्तूरी उसकी भीतर ही होती है,

उसी प्रकार परमात्मा हमारी आत्मा के भीतर ही है, वैसे ही सभी जीवो के भीतर भी है। सभी जीवात्मा ही परमात्मा है,सभी जीवो की रक्षा करना यानी कि मन,वचन,काया से अहिंसा का पालन करना ही वास्तविक धर्म है।


देवी-देवता भी जन्म मरण के बंधनो से मुक्त और कर्मो से शुद्ध नहीं है। इसलिए वेदो में किसी भी देवी-देवता की मूर्ति पूजा का जिक्र नहीं है,सभी दोषों और कर्मो से शुद्ध होकर परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करने वाले परम-आत्मा(परमात्मा) ही पूजनीय है।


जैसे अरिहंत और सिद्ध परमात्मा।

वेदों में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है, जैसे कि चारों वर्ण व्यवस्था को वैदिक ग्रंथ "पुरुष सूक्त" में मनुष्य रूप में कल्पना कि है-

ब्राह्मण-सिर ,

क्षत्रिय-भूजा ,

वैश्य(व्यापारी)- धड़ और

शूद्र -पैर,


वैसे ही क्रिएशन(बनना), सस्टेन(बने रहना),डिस्ट्रक्शन(नाश होना), तीनों प्रक्रियाओं को ब्रह्मा-विष्णु-महेश के रूप में कल्पना की गई है।


ब्रह्मा-समोवसरण में चारों दिशाओं में ब्रह्म ज्ञान देते हुए,


विष्णु-वर्ण व्यवस्था को स्थापित कर प्रजा का पालन पोषण करने के रुप में,


महेश-अनंता भव्यात्माओ के भवसागर का नाश कर उन्हें मुक्ति दिलाने के रूप में,


 मानवीकरण के कुछ और उदाहरण-

 गंगा नदी को स्त्री के रूप में,

तुलसी के पौधे को भी स्त्री के रूप में,

वायु,अग्नि,जल,अन्न उन सभी को देवता के रूप में,

धरती को स्त्री के रूप में,

भारत देश को माता के रूप में,

सिर्फ मानवीकरण किया गया है

वैसे ही प्रकृति के नियमों को और कर्मो की थियरी को अदृश्य ईश्वर के रूप में कल्पना की गई है,


वास्तव में आत्मा ही परमात्मा है,

आत्मा शुद्ध प्रकाश स्वरूप है,

आत्मा ही शाश्वत अजन्मा है,

आत्मा का कोई रंग रूप नहीं ,आत्मा निराकार है,

आत्मा ही कर्म अनुसार पंचमहाभूतो को प्राप्त कर शरीर बनाती है,(स्वर्ग में दैवीय शरीर,नरक में नारकीय शरीर,पशुगति में इन्द्रियो अनुसार शरीर, मनुष्य गति मे मानव शरीर आत्मा ही बनाती है)(पंचमहाभूत-

1-पृथ्वी से हड्डी

2-जल से खून 

3-वायु से श्वाच्छोश्वास

4-अग्नि से जठराग्नि

5-आकाश से शरीर के अंदर का वैक्यूम भाग) 

ये पंचमहाभूत प्रत्येक आत्मा को उनके पिछले जन्मों के कर्मों के अनुसार मिल जाता है।

 

आत्मा ही कर्मों अनुसार भाग्य लिखती है, इसलिए वह "भाग्यविधाता" कहलाती है।


आत्मा एक यात्रिक है जो 84लाख योनियों(चार गतियों) में तब तक सफर करती है जब तक सभी दोषों और कर्मो से शुद्ध होकर उसे अपना गंतव्य "मोक्ष" नहीं मिल जाता।

चार गतिया है-

1-स्वर्ग/देवलोक/heaven

2-नरक/hell

3-तीर्यंच गति-(पशु और वनस्पति आदि)

4-मानव गति।

देवलोक में जिन्हें अच्छे कर्म अनुसार जन्म मिला है उन्हें ही देवी देवता/angles/ फ़रिश्ते कहा जाता है।


परमात्मा की विशेषता-

1-अजर-अमर-

आत्मा ना ही जन्म लेती है ना ही मरती है (मात्र शरीर का जन्म-मरण होता है) इसलिए आत्मा "अजर-अमर अजन्मा" कहलाती है।


2-निराकार- आत्मा का कोई आकार नहीं होता। आत्मा निराकार है।


3-सर्वज्ञ-

आत्मा ही सम्पुर्ण केवलज्ञान प्राप्त कर "सर्वज्ञ,अंतर्यामी" कहलाती है।


4-सर्वशक्तिमान-

आत्मा ही जन्म-मरण के सभी दुखों भूख- प्यास, ठंडी ,गर्मी,रोग-बुढापा,भय,मैथुन आदि वेदनिय कर्मो से मुक्त होकर मोक्ष में "सच्चिदानंद ,सर्वशक्तिमान" कहलाती है


5-परमात्मा-आत्मा ही कर्मों की धूल को दूर कर शुद्ध,बुद्ध,सिद्ध बनती है।परम पद मोक्ष को प्राप्त कर "परम-आत्मा" परमात्मा बनती है,


6-परम दयावान-

उनके ही उपदेशों से धरती पर धर्म टिका रहता है। उनके दिल में समग्र जीवसृष्टि के प्रति करुणा होने से वे परम दयावान प्रेम का सागर कहलाती हैं।


7-उपरवाला-

सभी स्वर्गो से ऊपर मोक्ष मे स्थान प्राप्त कर "ऊपरवाला" कहलाती हैं।


8-भगवान-

भाग्य सम्पुर्ण होने से "भगवान" कहलाती है


9-God

who have got destination 


10-ईश्वर-

सभी आत्माओ में श्रेष्ठ(ईष्ट) होने से "ईश्वर" कहलाती है।


11-सृष्टिनिर्माता-

प्रत्येक आत्मा और उसके कर्मों(matters) के joint venture से ही समस्त जीवसृष्टि बनी है।


12-सर्वव्यापक-

जीवात्माओं से ही सम्पुर्ण जीवसृष्टि भरी हुई है इसलिए समस्त सृष्टि में व्यापक " कहलाती है।


13-खुदा

खुदा शब्द भी स्वधा शब्द से बना है जिसका अर्थ है भवसागर से पार लगने वाली आत्मा।


14-विधाता-

आत्मा अपने कर्मों से अपना भाग्य स्वयं लिखती है इसीलिए वह भाग्यविधाता कहलाती है।


जैसे अंधेरा कुछ नहीं मात्र प्रकाश का अभाव है।

ठंडी कुछ नहीं मात्र तापमान का अभाव है।

शैतान कुछ नहीं मात्र आत्मज्ञान का अभाव है।

मिथ्यात्व कुछ नहीं मात्र सम्यक दर्शन का अभाव है।

वैसे ही नास्तिकता कुछ नहीं मात्र आत्मा के अस्तित्व पर आस्था का अभाव है।


जिस प्रकार उर्जा को ना पैदा किया जा सकता है ना नष्ट किया जा सकता है मात्र रुपांतरण किया जा सकता है उसी प्रकार आत्मा ना पैदा होती है ना नष्ट होती है,बस एक शरीर से दूसरे शरीर में रुपांतर होती है,आत्मा शाश्र्वत है।


 वास्तव में कोई अदृश्य रचयिता नही है, सभी आत्मा ही भावि परमात्मा है।

वास्तव में धर्म का अर्थ सभी आत्माओं में परमात्मा देखना,सभी जीवो के प्रति दया, प्रेम,करुणा,वात्सल्य,मैत्री रखना है।

करुणा धर्म का मूल है, अहिंसा परम धर्म है।।

इस सृष्टि की रचना संपूर्ण जीवसृष्टि से हुई हैं, और यह रचना अनंतकाल तक चलती रहेगी।

आत्मा ही ब्रह्मा है, जीव ही शिव है आत्मा ही परमात्मा है।



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