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श्रीनाथ जी मंदिर, नाथद्वारा का इतिहास

 1669 ईसवी ।


औरंगज़ेब ने समस्त वैष्णव मन्दिरों को तोड़ने का आदेश दिया । 

मथुरा के  श्रीनाथ जी मंदिर के पुजारी श्री कृष्ण की मूर्ति लेकर राजस्थान की ओर निकल गए । 


जयपुर व जोधपुर के राजाओं ने औरंग से बैर लेना उचित नहीं समझा । पुजारी मेवाड़ की पुष्यभूमि पर महाराणा राजसिंह के पास गए ।

एक क्षण के विलम्ब के बिना राज सिंह ने यह कहा - 

“ जब तक मेरे एक लाख राजपूतों का सर नहीं कट जाए , आलमगीर भगवान की मूर्ति को हाथ नहीं लगा सकता । आपको मेवाड़ में जो स्थान जंचे चुन लीजिए , मैं स्वयं आकर मूर्ति स्थापित करूँगा । “ 


मेवाड़ के ग्राम सिहाड़ में श्रीनाथ जी की प्रतिष्ठा धूमधाम से हुई , जिसमें स्वयं राज सिंह पधारे ।




आज जो प्रसिद्ध नाथद्वारा तीर्थस्थल है , वह सिहाड़ ग्राम ही है । 

औरंग ने राज सिंह जी को पत्र लिखा कि श्रीनाथ जी की मूर्ति को शरण दी तो युद्ध होगा । 


राज सिंह जी ने कोई उत्तर ना दिया । चुपचाप मारवाड़ के वीर दुर्गादास राठौड़ के नेतृत्व में राठौडों व मेवाड़ के हिन्दुओं की सामूहिक सेना का गठन करने लगे । 


1679-80 ईसवीं । दो वर्षों तक मुग़ल मेवाड़ संघर्ष चला । 

दो बार राज सिंह जी ने औरंग को गिरफ़्तार करके दया करके छोड़ दिया । 

1680 में पूर्ण रूप से पराजित औरंग अपना काला मुँह लेकर सर्वथा के लिए राजस्थान से चला गया । 

नाथद्वारा हम में से बहुत लोग गए हैं । 

हमें क्यूँ नहीं पता कि यह विग्रह मूल रूप से मथुरा के हैं ? 

किसके कारण पुजारियों को पलायन करना पड़ा ? 

किसने अपना सर्वस्व दाँव पर लगाकर श्रीनाथ जी की रक्षा की ? 

किसी ने राज सिंह जी का नाम भी सुना है ?

हमें क्यूँ नहीं पता कि पचास सहस्त्र (हज़ार) मेवाड़ व मारवाड़ के हिन्दुओं ने शीश का बलिदान देकर मुग़लों से श्रीनाथ जी की रक्षा की थी ? 


इस अभागे देश के इतिहासकार तो ठग हैं ही ( केवल शिष्टाचार के चलते माँ बहन की गालियाँ नहीं दे रहा हूँ ) , पर हम हिन्दुओं को क्या हुआ है ? 


भोगविलास में हम अपने देवताओं, अपने महिमाशाली पुरखों के नाम तक विस्मृत कर चुके हैं ! 


अब नाथद्वारा जाएँ तो इन महान पूर्वजों की स्मृति में दो अश्रु बहाएँ व आकाश की ओर मुँह करके इन महान आत्माओं का धन्यवाद दें जिनके कारण हम आज हिन्दू हैं ।

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